Chapter- 4
जल संसाधन
जल संसाधन
- जल एक प्राकृतिक संसाधन है।
- जल के बिना जीवन संभव नहीं है।
- पृथ्वी का 71% धरातल पानी से घिरा है।
- इस प्रकार पृथ्वी पर जल प्रचुर मात्रा में है।
- परंतु अलवणीय ( मीठा जल ) जल कुल जल का केवल लगभग 3 प्रतिशत ही है।
- अलवणीय जल की उपलब्धता स्थान और समय के अनुसार भिन्न-भिन्न है।
- जल संसाधन के बंटवारे और नियंत्रण पर तनाव और लड़ाई झगड़े, संप्रदायों, प्रदेशों और राज्यों के बीच विवाद का विषय बन गए हैं।
- विकास को सुनिश्चित करने के लिए जल का मूल्यांकन, सही उपयोग और संरक्षण आवश्यक हो गए हैं।
धरातलीय जल संसाधन
धरातलीय जल के चार मुख्य स्रोत हैं-
1. नदियाँ
2. झीलें
3. तलैया
4. तालाब
जल संसाधन की स्थिति
- देश में कुल नदी तथा उनकी सहायक नदी को मिलाकर 10,360 नदियाँ हैं।
- भारत में सभी नदी बेसिनों में औसत वार्षिक प्रवाह 1,869 घन कि.मी. होने का अनुमान किया गया है।
- फिर भी स्थलाकृतिक, जलीय और अन्य दबावों के कारण प्राप्त धरातलीय जल का केवल लगभग 690 घन कि. मी. (32%) जल का ही उपयोग किया जा सकता है।
- भारत में वर्षा में अत्यधिक स्थानिक विभिन्नता पाई जाती है और वर्षा मुख्य रूप से मानसूनी मौसम संकेद्रित है।
- भारत में कुछ नदियाँ, जैसे- गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु के जल ग्रहण क्षेत्र बहुत बड़े हैं।
- गंगा, ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में वर्षा अपेक्षाकृत अधिक होती है।
- ये नदियाँ देश के कुल क्षेत्र के लगभग एक-तिहाई भाग पर पाई जाती हैं जिनमें कुल धरातलीय जल संसाधनों का 60 प्रतिशत जल पाया जाता है।
- दक्षिणी भारतीय नदियों, जैसे- गोदावरी, कृष्णा और कावेरी में वार्षिक जल प्रवाह का अधिकतर भाग काम में लाया जाता है लेकिन ऐसा ब्रह्मपुत्र और गंगा बेसिनों में अभी भी संभव नहीं हो सका है।
भौम जल संसाधन
- भूमि के अन्दर जो जल होता है उसे भौम जल कहा जाता है
1. भौम जल का कम उपयोग छत्तीसगढ़, ओडिशा, केरल
2. भौम जल का मध्यम उपयोग गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार,त्रिपुरा,महाराष्ट्र
3. भौम जल का अधिक उपयोग पंजाब ,हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु
- यदि जिस प्रकार से भौम जल स्तर गिर रहा है ही प्रवृत्ति जारी रहती है तो जल के माँग की आपूर्ति करने की आवश्यकता होगी। ऐसी स्थिति विकास के लिए हानिकारक होगी और सामाजिक उथल-पुथल और विघटन का कारण हो सकती है।
लैगून और पश्च जल
- भारत की समुद्र तट रेखा विशाल है और कुछ राज्यों में समुद्र तट बहुत दंतुरित (indented) है।
- इसी कारण बहुत-सी लैगून और झीलें बन गई हैं।
- केरल, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में इन लैगूनों और झीलों में बड़े धरातलीय जल संसाधन हैं।
- इन जलाशयों में खारा जल है, इसका उपयोग मछली पालन और चावल की कुछ निश्चित किस्मों, नारियल आदि की सिंचाई में किया जाता है।
जल की माँग और उपयोग
- भारत एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है और इसकी जनसंख्या का लगभग दो-तिहाई भाग कृषि पर निर्भर है।
- इसीलिए, पंचवर्षीय योजनाओं में, कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए सिंचाई के विकास को एक अति उच्च प्राथमिकता प्रदान की गई है और बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ
- जैसे -
भाखड़ा नांगल, हीराकुड, दामोदर घाटी नागार्जुन सागर, इंदिरा गांधी नहर परियोजना आदि शुरू की गई हैं।
- भारत की वर्तमान में जल की माँग, सिंचाई की आवश्यकताओं के लिए अधिक है।
- धरातलीय और भौम जल का सबसे अधिक उपयोग कृषि में होता है।
- इसमें धरातलीय जल का 89 प्रतिशत और भौम जल का 92 प्रतिशत जल उपयोग किया जाता है।
- जबकि औद्योगिक सेक्टर में, सतह जल का केवल 2 प्रतिशत और भौम जल का 5 प्रतिशत भाग ही उपयोग में लाया जाता है।
सिंचाई के लिए जल की माँग
- कृषि में, जल का उपयोग मुख्य रूप से सिंचाई के लिए होता है।
- देश के अधिकांश भाग वर्षाविहीन और सूखाग्रस्त हैं।
- उत्तर-पश्चिमी भारत और दक्कन का पठार इसके अंतर्गत आते हैं।
- शुष्क ऋतुओं में बिना सिंचाई के खेती करना कठिन होता है।
- पर्याप्त मात्रा में वर्षा वाले क्षेत्र जैसे पश्चिम बंगाल और बिहार में भी मानसून के मौसम में अवर्षा अथवा इसकी असफलता सूखा जैसी स्थिति उत्पन्न कर देती है जो कृषि के लिए हानिकारक होती है।
- कुछ फ़सलों के लिए जल की कमी सिंचाई को आवश्यक बनाती है। दाहरण के लिए चावल, गन्ना, जूट आदि के लिए अत्यधिक जल की आवश्यकता होती है जो केवल सिंचाई द्वारा संभव है
- सिंचाई की व्यवस्था बहुफ़सलीकरण को संभव बनाती है। ऐसा पाया गया है कि सिंचित भूमि की कृषि उत्पादकता असिंचित भूमि की अपेक्षा ज्यादा होती है।
- देश में कृषि विकास की हरित क्रांति की रणनीति का लाभ पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिक हुआ है।
भौम जल में कमी
- इन राज्यों में गेहूँ और चावल मुख्य रूप से सिंचाई की सहायता से पैदा किए जाते हैं।
- ये राज्य अपने संभावित भौम जल के एक बड़े भाग का उपयोग करते हैं जिससे कि इन राज्यों में भौम जल में कमी आ रही है
- इन राज्यों में भौम जल संसाधन के अत्यधिक उपयोग से भौम जल स्तर नीचा हो गया है।
- कुछ राज्यों, जैसे- राजस्थान और महाराष्ट्र में अधिक जल निकालने के कारण भूमिगत जल में फ्लुओराइड का संकेंद्रण बढ़ गया है
- और इस वजह से पश्चिम बंगाल और बिहार के कुछ भागों में संखिया (arsenic) के संकेंद्रण की वृद्धि हो गई।
भौम जल की कमी से ग्रषित राज्य
- राजस्थान और महाराष्ट्र में अधिक जल निकालने के कारण भूमिगत जल में फ्लुओराइड का संकेंद्रण बढ़ गया है
- पश्चिम बंगाल और बिहार के कुछ भागों में संखिया (arsenic) के संकेंद्रण की वृद्धि हो गई।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
- 2015-16 के दौरान केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना का मुख्य उद्देश्य था कृषि कार्यो के लिए सिंचाई साधन पहुचना इसका उद्देश्य था
- सिंचाई के तहत खेती योग्य भूमि का विस्तार
- प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं के माध्यम से पानी का सर्वोत्तम उपयोग
- खेत में जल उपयोग दक्षता में सुधार, सिंचाई और अन्य जल बचत प्रौद्योगिकियां (प्रति बूंद अधिक फसल)
- जल संरक्षण के जरिये विकाश हासिल करना जैसे भूजल के पुनर्जनन,अपवाह को रोकना
संभावित जल समस्या
- जनसंख्या बढ़ने के कारण से जल की उपलब्धता दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है।
- उपलब्ध जल संसाधन औद्योगिक कृषि और घरेलू निस्सरणों से प्रदूषित होता जा रहा है
- इस कारण उपयोगी जल संसाधनों की उपलब्धता और सीमित होती जा रही है।
जल के गुणों का ह्रास
- जल गुणवत्ता से तात्पर्य जल की शुद्धता अथवा अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल से है।
- जल बाह्य पदार्थों, जैसे- सूक्ष्म जीवों, रासायनिक पदार्थों, औद्योगिक और अन्य अपशिष्ट पदार्थों से प्रदूषित होता है।
- इस प्रकार के पदार्थ जल के गुणों में कमी लाते हैं और इसे मानव उपयोग के योग्य नहीं रहने देते हैं।
- जब विषैले पदार्थ झीलों, सरिताओं, नदियों, समुद्रों और अन्य जलाशयों में प्रवेश करते हैं, वे जल में घुल जाते हैं
- इससे जल प्रदूषण बढ़ता है और जल के गुणों में कमी आने से जलीय तंत्र (aquatic system) प्रभावित होते हैं।
- कभी-कभी प्रदूषक नीचे तक पहुँच जाते हैं और भौम जल को प्रदूषित करते हैं।
- देश में गंगा और यमुना, दो अत्यधिक प्रदूषित नदियाँ हैं।
जल संरक्षण और प्रबंधन
- वर्तमान समय में अलवणीय जल कम हो रहा है लेकिन जल की माँग बढ़ती जा रही है , ऐसे में सतत पोषणीय विकास के लिए इस महत्वपूर्ण जीवनदायी संसाधन के संरक्षण और प्रबंधन की आवश्यकता बढ़ गई है।
- भारत को जल-संरक्षण के लिए तुरंत कदम उठाने हैं और प्रभावशाली नीतियाँ और कानून बनाने हैं, और जल संरक्षण हेतु प्रभावशाली उपाय अपनाने हैं।
- जल बचत तकनीक और विधियों के विकास के अतिरिक्त, प्रदूषण से बचाव के प्रयास भी करने चाहिए।
- जल-संभर विकास, वर्षा जल संग्रहण, जल के पुनः चक्रण और पुनः उपयोग और लंबे समय तक जल की आपूर्ति के लिए
- जल के संयुक्त उपयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
जल प्रदूषण का निवारण
- उपलब्ध जल संसाधनों का तेज़ी से निम्नीकरण हो रहा है।
- देश की मुख्य नदियों के प्रायः पहाड़ी क्षेत्रों के ऊपरी भागों तथा कम बसे क्षेत्रों में अच्छी जल गुणवत्ता पाई जाती है।
- मैदानों में, नदी जल का उपयोग गहन रूप से कृषि, पीने, घरेलू और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
- नदियों में प्रदूषकों का संकेंद्रण गर्मी के मौसम में बहुत अधिक होता है क्योंकि उस समय जल का प्रवाह कम होता है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.), राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एस.पी.सी.) के साथ मिलकर 507 स्टेशनों की राष्ट्रीय जल संसाधन की गुणवत्ता की निगरानी किया जा रहा है।
- इन स्टेशनों से प्राप्त किया गया आँकड़ा दर्शाता है कि जैव और जीवाणविक संदूषण नदियों में प्रदूषण का मुख्य स्रोत है।
1. दिल्ली और इटावा के बीच यमुना नदी देश में सबसे अधिक प्रदूषित नदी है।
2. दूसरी प्रदूषित नदियाँ अहमदाबाद में साबरमती, लखनऊ में गोमती, मदुरई में काली
3. हैदराबाद में मूसी कानपुर और वाराणसी में गंगा है।
- भौम जल प्रदूषण देश के विभिन्न भागों में भारी/विषैली धातुओं, फ्लुओराइड और नाइट्रेट्स के संकेंद्रण के कारण होता है।
- वैधानिक व्यवस्थाएँ, जैसे- जल अधिनियम 1974 (प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण) और पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986, प्रभावपूर्ण ढंग से कार्यान्वित नहीं हुए हैं।
- परिणाम यह है कि 1997 में प्रदूषण फैलाने वाले 251 उद्योग, नदियों और झीलों के किनारे स्थापित किए गए थे।
जल उपकर अधिनियम 1977
- जिसका उद्देश्य प्रदूषण कम करना है, उसके भी सीमित प्रभाव हुए।
- जल के महत्व और जल प्रदूषण के प्रभावों के बारे में जागरूकता का प्रसार करने की आवश्यकता है।
- जन जागरूकता और उनकी भागीदारी से, कृषिगत कार्यों तथा घरेलू और औद्योगिक विसर्जन से
- प्राप्त प्रदूषकों में बहुत प्रभावशाली ढंग से कमी लाई जा सकती है।
जल का पुनः चक्र और पुनः उपयोग
- पुनः चक्र और पुनः उपयोग, अन्य तरीके हैं जिनके द्वारा अलवणीय जल की उपलब्धता को सुधारा जा सकता है।
- कम गुणवत्ता के जल का उपयोग, जैसे शोधित अपशिष्ट जल, उद्योगों के लिए एक आकर्षक विकल्प हैं और
- जिसका उपयोग शीतलन ( cooling ) एवं अग्निशमन ( fire-fighting ) के लिए इस्तेमाल करके वे जल पर होने वाली लागत को कम कर सकते हैं।
- इसी तरह नगरीय क्षेत्रों में स्नान और बर्तन धोने में प्रयुक्त जल को बागवानी के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।
- वाहनों को धोने के लिए प्रयुक्त जल का उपयोग भी बागवानी में किया जा सकता है। इससे अच्छी गुणवत्ता वाले जल का पीने के उद्देश्य के लिए संरक्षण होगा।
- वर्तमान में, पानी का पुनः चक्रण एक सीमित माप में किया गया है। फिर भी, पुनः चक्रण द्वारा पुनः पूर्तियोग्य जल की उपादेयता व्यापक है।
जल संभर
- जल संभर प्रबंधन का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों और समाज के बीच संतुलन लाना है।
- जल-संभर व्यवस्था की सफलता मुख्य रूप से संप्रदाय के सहयोग पर निर्भर करती है।
- केंद्रीय और राज्य सरकारों ने देश में बहुत से जल- संभर विकास और प्रबंधन कार्यक्रम चलाए हैं। इनमें से कुछ गैर सरकारी संगठनों द्वारा भी चलाए जा रहे हैं।
हरियाली
- 'हरियाली' केंद्र सरकार द्वारा प्रवर्तित जल-संभर विकास परियोजना है जिसका उद्देश्य ग्रामीण जनसंख्या को पीने, सिंचाई, मत्स्य पालन और वन रोपण के लिए जल संरक्षण के लिए योग्य बनाना है।
- परियोजना लोगों के सहयोग से ग्राम पंचायतों द्वारा निष्पादित की जा रही है।
नीरू-मीरू कार्यक्रम
- नीरू-मीरू (जल और आप) कार्यक्रम (आंध्र प्रदेश में) अरवारी पानी संसद (अलवर राजस्थान में) के अंतर्गत लोगों के सहयोग से विभिन्न जल संग्रहण संरचनाएँ जैसे- अंतः स्रवण तालाब ताल (जोहड़) की खुदाई की गई है और रोक बाँध बनाए गए हैं।
- तमिलनाडु में घरों में जल संग्रहण संरचना को बनाना आवश्यक कर दिया गया है। किसी भी इमारत का निर्माण बिना जल संग्रहण संरचना बनाए नहीं किया जा सकता है।
वर्षा जल संग्रहण के फायदे
- कुछ क्षेत्रों में जल-संभर विकास परियोजनाएँ पर्यावरण और अर्थव्यवस्था का कायाकल्प करने में सफल हुई हैं।
- देश में लोगों के बीच जल संभर विकास और प्रबंधन के लाभों को बताकर जागरूकता उत्पन्न करने की आवश्यकता है
- वर्षा जल संग्रहण विभिन्न उपयोगों के लिए वर्षा के जल को रोकने और एकत्र करने की विधि है।
- यह एक कम मूल्य और पारिस्थितिकी अनुकूल विधि है
- जिसके द्वारा पानी की प्रत्येक बूँद संरक्षित करने के लिए वर्षा जल को नलकूपों, गड्ढों और कुओं में एकत्र किया जाता है।
- वर्षा जल संग्रहण पानी की उपलब्धता को बढ़ाता है, भूमिगत जल स्तर को नीचा होने से रोकता है, फ्लुओराइड और नाइट्रेट्स जैसे संदूषकों को कम करके भूमिगत जल की गुणवत्ता बढ़ाता है, मृदा अपरदन और बाढ़ को रोकता है
- देश में विभिन्न समुदाय लंबे समय से अनेक विधियों से वर्षाजल संग्रहण करते आ रहे हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरागत वर्षा जल संग्रहण सतह संचयन जलाशयों, जैसे- झीलों, तालाबों, सिंचाई तालाबों आदि में किया जाता है।
- राजस्थान में वर्षा जल संग्रहण ढाँचे जिन्हें कुंड अथवा टाँका (एक ढका हुआ भूमिगत टंकी) के नाम से जानी जाती है जिनका निर्माण घर अथवा गाँव के पास या घर में संग्रहित वर्षा जल को एकत्र करने के लिए किया जाता है।
राष्ट्रीय जल नीति - 2012
राष्ट्रीय जल नीति – 2012 का उद्देश्यदेश के जल संसाधनों के संरक्षण करना जल संसाधनों का विकास और बेहतर प्रबंधन करना
राष्ट्रीय जल नीति की मुख्य विशेषता
- नदियों और नदी घाटियों के विकास के लिए एक राष्ट्रीय जल ढांचा कानून, व्यापक कानून की आवश्यकता पर जोर।
- सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता, खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने, अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर गरीब लोगों का समर्थन करने
- जल संसाधन संरचनाओं के डिजाइन और प्रबंधन के लिए जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर अनुकूलन रणनीतियों पर जोर दिया गया है।
- पानी के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न उद्देश्यों के लिए पानी के उपयोग के लिए बेंचमार्क विकसित करने की एक प्रणाली विकसित की जानी चाहिए,यानी जल पदचिन्ह और जल ऑडिटिंग।
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